इस विषय को मै थोडा सा-बढ़ा दूँ, क्युकी वह जरूरी है, कि हिन्दुस्तान की राजनीति में तब सफाई और भलाई आयेगी जब किसी पार्टी के ख़राब काम, सरकार के ख़राब काम की निंदा दूसरी पार्टी के लोग ही सिर्फ न करे, बल्कि उस पार्टी के लोग भी करे | यह आज नहीं हो रहा है | जब कोई सरकार गोली चलाती है, तब उसकी पार्टी उसकी निंदा नहीं करती, दुसरे सब निंदा करते है | कांग्रेस गोली चलाती है, तो गैरकांग्रेसी निंदा करते है | कम्यूनिस्ट गोली चलाते है तो गैर कम्यूनिस्ट निंदा करते है | सोशलिस्ट जब गोली चलाते थे, और यह मै याद दिला दूँ कि मुझे यह कहने का है और मुझ जैसे लोगो को हि हम ही हिन्दुस्तान में एक राजनैतिक पार्टी है जिन्होंने अपनी सरकार कि भी निंदा की थी | और, सिर्फ निंदा ही नहीं की, बल्कि एक मानी में उसको इतनी जोर से तंग किया कि उसे हट जाना पड़ा | अब जबकि कम्यूनिस्ट सरकार गोली चला रही है, तो खुद कम्यूनिस्ट पार्टी के आदमियों से मेरा निवेदन है कि वे इस काम की निंदा करे | दुसरे तो खैर करते ही है | तब जाकर कुछ असर पड़ेगा | उसी तरह से, जब कांग्रेस सरकारे ऐसा करें तब कांग्रेसी लोग निंदा करें |
दूसरी बात, थोडा-सा और जोड़ दूँ कि अगर कोई कतल या चोरी आपके सामने हुई हो, और आपको उसका पता है और तब आप छुपायें, तो आप भी मुजरिम हो जाते है | जुर्म में कुछ तो आपका हिस्सा बंटा | खैर ११ वर्ष से कम्यूनिस्ट ने कांग्रेसी जुर्म को छिपाकर रखा | लेकिन एक चीज मै और जोड़ दूँ | अगर मान लों, किसी तरह से कम्यूनिस्टों का कांग्रेसियों से समझौता हो गया, तो, शायद, वे अपनी धमकी फिर वापस से लेंगे, और आंध्र व् बंगाल की खराबियां है, वे बतलाने वाले है, फिर नहीं बतायेंगे | फिर उस जुर्म पर पर्दा पड़ा रह जायेगा, और वे झगडा करने वाले है, वह भी नहीं होगा | मै पहले से कह देना चाहता हूँ की अगर ऐसी चीज हुई तो उसके साफ़ मतलब है कि खून करने वाला तो खूनी होता ही है, लेकिन अपनी आँखों से खून देखकर, उसका पता जानकर जो उससे चुप रह जाता है, वह भी जुर्म में हिस्सा लेता है | अगर किसी तरह से कम्यूनिस्ट का और कांग्रेस का समझौता हो गया और फिर उन्होंने आंध्र और बंगाल के बारे में कुछ नहीं किया, तब यह पूरा सबूत हो जायेगा, हमेशा के लिए वे जुर्म के हिस्सेदार है |
अब मैं, आज के विषय पर बोलते हुए, सबसे पहले आप का ध्यान आंध्र की मिशल देकर अपनी बात शुरू करता हूँ | आंध्र के कुछ पढ़े-लिखे ब्राह्मण और कुम्मा दुखी है कि रेड्डी राज हो गया है | अब मेरी बात सुनो | नहीं तो २०-३० वर्ष के अंदर-अंदर रेड्डी लोग खुद ही दुखी होंगे कि कापू और पद्शाली राज हो गया है | और मामला वही नहीं रुकेगा | शायद ४०-५० वर्ष के अंदर रेड्डी, कापू, ब्राह्मण सभी दुखी होंगे की अब तो मादिगा माला का राज भी आ गया | इसलिए, अब इस विषय पर गंभीरता के साथ आंध्र की जनता और हिन्दुस्तान की जनता को सोचना चाहिए, क्युकी जाति का यह चक्र चलता रहेगा | जो सबसे ज्यादा दबी हुई जातियां है और बहुसंख्यक हैं, वे बालिग वोट होने के कारण धीरे-धीरे ऊपर तो आयेंगी, चाहे २० वर्ष लगें, चाहे ४० वर्ष लगें, और जब वे ऊपर आयेंगी तब बाकी लोग निचे जायेंगे, उनको दुःख होगा | सब सुखी नहीं हो सकेंगे, कभी कोई दुखी होगा तो कभी कोई, और यह चक्र चलता रहेगा | अगर आप चाहते हो कि कोई एक सुखी न हो, बल्कि सभी सुखी हो तो फिर इस जाति के चक्र को तोडना होगा | वह तभी हो सकता है जबकि किसी एक जाति के अधिकार को कम करके दूसरी जाति को बिठाने की बजाये कोशिश यह की जाये कि सब लोगो के अधिकार को कम करके दूसरी जाति को बिठाने के बजाये कोशिश यह की जाये कि सब लोगो के अधिकार करीब-करीब से हो जाये | इसका कोई तरीका निकला जाए |
क्योंकि इस विषय पर सोचने-समझने में गलती हो जाती है | इसलिए सबसे पहले मै कुछ आकडे बतला देता हूँ, लोग उन आंकड़ो को याद नहीं रखते | ऊँची जाती कौन है, छोटी जाती कौन है, हरिजन कौन है आम तौर पर लोग हरिजन की बात सोच लेते है क्योंकि गांधीजी ने उनकी बहुत चर्चा की और नेहरु सरकार भी बहुत चर्चा करती है | लेकिन जो पिछड़ी जातियां है, जिन्हें हिन्दू धर्मशास्त्रो के मुताबिक शूद्र करते है, उनका अच्छी तरह से नहीं ख्याल करते | शूद्र और हरिजन या पिछड़ी जातियां और हरिजन इनके फर्क को याद रखते हुए इस विषय पर सोचना चाहिए | खाली हरिजनों को सोचेंगे तो मामला इतना साफ़ नहीं हो पायेगा | और दुसरे भी है, जैसे आदिवासी है या जैसे मुसलमानों में मोमिन, अंसार है, क्रिस्तानो में भी है | ये छोटी जाती के जितने लोग दबे हुए रहे है उनकी एक परिभाषा नहीं है | लेकिन समझने के लिए उनका एक गुण बतलाए देता हूँ जिनका पैदाईशी धंधा दिमाग से बहोत कम तलूक रखता है और धंधो में ही जो बाँट दिए गए है | मोटी तरह से आंध्र में जिसे ऊँची जाती कहना चाहिए, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, उसके बहोत कम लोग होंगे | मैं समझता हूँ कि वे मुश्किल से १५-२० लाख के बीच में होंगे | लेकिन वह संकुचित अर्थ न लेकर व्यापक अर्थ लेना चाहिए | उन सभी को ऊँची जाति वाले माने, चाहे हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक वे ऊँची जाति के हों या न हों, जो इस इलाके में कभी राजा रह चुके है या जो आज भी राजनीति के पलटाव में फिर से जनतंत्र में राजा बन रहे है जैसे रेड्डी या वेलमा | वैसे वेलमा राजा नहीं बने हैं, लेकिन कभी रह चुके है | कुछ थोडा-बहुत अपने धन के कारण कम्मा को भी उनमे शामिल किया जा सकता है | इन सबकी तादाद, मतलब ब्राह्मण, राजू कुछ थोड़े-बहुत वैश्य होते है जनेऊ वाले कम्मा रेड्डी और वेलमा ये सब मिलाकर ५०-५५ लाख से ज्यादा नहीं होंगे | आंध्र की आबादी कोई सवा तीन करोंड़ की है | इस विषय पर सोच-विचार करते समय इसको कभी नहीं भूल जाना चाहिए कि सवा तीन करोड़ मे से ये जितनी भी ऊँची जाति के लोग कहलाने जाने वाले लोग है, उनकी संख्या ५० लाख या ५५ लाख या ६० लाख से ज्यादा नहीं है | ये मुश्किल से ५ में ९ हुए जितने हिन्दुस्तानी है, आंध्र की जातियों के हिसाब से, उनमे ५ में १ ऊँची जाति का हो सकता है जबकि हम रेड्डी, कम्मा, वेलमा वगैरह सबको ऊँची जाति का मान लें तब |
उसी तरह से सारे हिंदुस्तान के आंकड़ों को भी अगर ले और पहले धर्म के मुताबिक चलें तो ब्राह्मण और क्षत्रिय और वैश्य और कायस्थ इनको भी गिने तब तो मुश्किल से 80000000 होंगे हो सकता है 10 20 50 मरुधर फर्क निकले लेकिन वहां भी मैं उसी कसोटी को लेता हूं जिसे आंध्र में लिया और मराठा और मुदलियार वगैरह को ऊंची जाति में शामिल कर लेता हूं चाहे धर्म उन्हें करता हो ना करता हो| क्या इसलिए कि उन्होंने रुपए पैदा करना शुरू किया या अब वह राजनीति में ऊंचे आने शुरू हुए हैं| उनको शामिल कर लेने के बाद भी ताजा 13 करोड़ से ज्यादा नहीं पहुंचती| हां एक जाति जरूर है जो कोशिश बहुत कर रही है इक्के-दुक्के के हिसाब से नहीं जाती के हिसाब से जैसे अमीर लोग लेकिन दूसरी कोशिश भी वहां जारी है कि जाति प्रथा भी खत्म हो| अगर उनकी तादाद भी इसमें शामिल कर ले तो फिर 16 करोड़ के करीब हो जाएंगे| 13 करोड़ ऊंची जाति वाले और 17 करोड़ छोटी जाति और हरिजन वगैरह, जबकि मैं आदिवासियों को और मुसलमानों को बिल्कुल अलग रख लेता हूं| अगर उनको भी शामिल कर लो तो तादाद बढ़ जाती है, 3-4 करोड़ आदिवासी होंगे और मुसलमानों को भी 4 करोड़ मोमिन अंसार वगैरा ही होंगे|
इस हिसाब से हिंदुस्तान का करीब 70 - 80 सैकड़ा आबादी का हिस्सा छोटी जाति का है| इस पर बहुत भूल हो जाती है| विश्वविद्यालय के लोग भूल सकते हैं| अभी कुछ दिनों पहले लखनऊ के विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और विद्यार्थियों ने कुछ खोज की थी और उसमें से वे इस नतीजे पर पहुंचे कि गांव में ऊंची जाति और छोटी जाति वाले करीब-करीब बराबर है| कुछ ऊंची जाति वालों की दादा 21 ही बताई| वह भूल इसलिए हुई कि वहां किसी को जमीन वाला देखा, चाहे 10 से 15 एकड़ ही क्यों ना हो, उसको उसमें शामिल कर लिया| जैसे आहेर और ग्वाले ज्यादातर उत्तर में हैं| मैं अभी उस हैसियत पर नहीं पहुंच पाए हैं, किस हैसियत पर किस दक्षिण के मुदलियार, रेड्डी पहुंच गए हैं| उन्होंने कोशिश की पिछले 10 से 15 वर्ष में लेकिन उस में नाकामयाब हुए हैं| उसका एक बड़ा कारण यह है कि उत्तर में ऊंची जातियों की तादाद ज्यादा है, यहां कम| यहां के जो रेडियो और मुदलियार कम थे वह तो निपट गए और लड़ाई में जीत गए, लेकिन वहां वाले, उन्हीं के जैसे, अभी जीत नहीं पाए|
जब हम इन आंकड़ों को पक्के मतलब में अच्छी तरह समझ लेते हैं| तो यह है हिंदुस्तान की हालत| इसका बहुत जबरदस्त असर पड़ता है| मैं चाहता हूं कि आज के हिंदुस्तान पर जो सबसे ज्यादा असरदायक चीज है वह यही है| हर एक मसले पर इसी के नतीजे निकलते हैं| सरकार कैसी है, रिश्वत है या नहीं, चावल और गेहूं का दाम कैसा है, पढ़ाई कैसी है और किस भाषा में होती है सबके अपने अलग-अलग कारण है, लेकिन जो हमेशा मौजूद रहता है और अपने देश की गिरावट में जो सबसे बड़ा कारण है वह यही है|
इस संबंध में कुछ बड़े-बड़े विद्वानों की बात कितनी गलत साबित हुई है, बिना बहस में पड़े उसे कह दूं| वह यह है कि जैसे-जैसे हिंदुस्तान यूरोप के संपर्क में आएगा और रेल गाड़ी वगैरह में हिंदुस्तानी सफर करेंगे और हिंदुस्तान के लड़के यूरोप में जाकर तालीम पाएंगे वैसे-वैसे जाती ढीली पड़ती जाएगी और खत्म हो जाएगी| किताबों में शायद यह अब तक भी पढ़ाया जाता है, हिंदुस्तान के सभी स्कूलों और कॉलेजों में| जो सबसे बड़ा विद्वान समाजशास्त्र का इधर 100 वर्ष में हुआ है, मैक्स वेबर, जो जानता तो इतना ज्यादा नहीं था लेकिन इन मामलों पर, सोचता बहुत था, उसने भी अपनी किताब में यही लिखा है कि यह बात बिल्कुल गलत है| आप सब देख रहे हो| रेलगाड़िया हुए 100 वर्ष हो गए, बड़े मजे से लोग सो वहां तो एक अजीब माजरा है| सोचा यह गया था कि जो हिंदुस्तानी मिलाया तो जाकर पढ़ेंगे, वापस लौटने पर अपनी जात पात को तोड़ेंगे ही| हुआ क्या?| विलायत कौन गए| विलायत यानी यूरोप सिर्फ इंग्लिशतान नहीं| छोटी जाति वालों के पास इतना पैसा ही था, ना विद्या थी, बिना संस्कार थे| मैं समझता हूं, अब तक जितने लोग यूरोप पढ़ने गए हैं, अगर उनकी सूची बनाई जाए- इधर जो वजीफों के कारण बच्चे जा रहे हैं उनको छोड़ दो, क्योंकि इसे ज्यादा से ज्यादा 5 सैकड़ा होंगे- तो 90-95 सैकड़ा लोग, लड़के और लड़कियां, ऊंची जाति वालों में अगर उनके मां बाप की माली रसिया या सामाजिक हैसियत देखो, तो 80 से 90 सैकड़ा ऐसे लोग मिलेंगे, जिनके पास खुद के पैसे हैं| ऐसा नहीं समझना चाहिए सर्व ब्राह्मण और सब रेडी यह सब क्षत्रिय को मौका मिला| वास्तव में ब्राह्मण या रेडी में भी जो धनी कुटुंब है यह उनके अंदर पढ़ने लिखने की परंपरा कुछ वर्षों से चली आ रही है उन्हीं को मौका मिलता है| पहले से ही ऊंची जाति और जब भी लाए थे पढ़कर लौट कर आते हैं तो ऊंची जाति में भी एक ऊंची जाति की सीढ़ी बन जाती है|