प्राक्कथन

प्राक्कथन

"लोहिया-आम्बेडकर व समाजवाद " विषय पर लिखी गई पुस्तक को किसी प्राक्कथन की आवश्यकता नहीं, शीर्षक ही सभी बाते कहने में स्वमेव समर्थ है | बाबा साहब और लोहिया समकालीन थे |दोनों कालजयी चिन्तक,विद्वान और उतने ही समाज सुधारक थे| लोहिया और बाबा साहेब पर अलग-अलग काफी लिखा पढ़ा गया है|इसमें किसी को शक नहीं की महात्मा गाँधी के बाद सबसे वैचारिक रूप से इस देश के जन मानस को आम्बेडकर व लोहिया ने ही प्रभावित किया है|दोनों समाजवाद के प्रबल पैरोकार थे |दलितों,शूद्रों व वंचित वर्ग की समस्याओं व समाधान तथा समाजवाद के विषय में दोनों की सोच एक जैसी थी|दोनों मानवीय शोषण व विषमता को ध्वस्त कर यहाँ शोषण-विहीन समतामूलक समाजवादी अवधारणाओं पर जितना बहस हुआ, उतना बाबा साहब के समाजवाद पर नहीं हुआ,ठीक वैसे ही जैसे बाबा साहब के दलित विमर्श पर जितनी बातें हुई उतनी लोहिया के दलितोत्थान पर नहीं हुई| वैसे भी दलितोत्थान,अल्पसंख्यकों व नारी का सशक्तिकरण और पिछड़े वर्ग को ताकत प्रदान करना समाजवाद की निर्गुण अवधारणा का सगुण क्रियान्वयन है|

एक भारतीय व समाजवादी होने के कारण हमारे मन में दोनों का एक सामान सम्मान है | बाबा साहब दलितों को राजनीतिक मंच प्रदान करना चाहते थे , लोहिया ने इस कार्य को पराजय का जोखिम उठा कर किया | ग्वालियर की महारानी के खिलाफ सुक्खोरानी मेहतरानी को चुनाव लड़ाने वाला लोहिया व समाजवादी पार्टी का प्रयोग बाबा साहब के दलित चिंतन का ही मूर्तरूप है | बाबा साहब “राज्य-समाजवाद” के पक्षधर थे , लोहिया की भांति वे भी हेराल्ड, मार्टिन लूथर किंग , टी . वासिंगटन , सिडनी वेब जैसे समाजवादी चिंतको व नेताओ से अनुप्रेरित थे | “लोहिया-बाबा साहब व समाजवाद” के सन्दर्भ में उल्लेखनीय है की ७ अगस्त १९३७ को आम्बेडकर की लेबर पार्टी के २० सदस्यों का उच्चस्तरीय शिष्टमंडल महारास्त्र के तत्कालीन प्रधानमंत्री ( तब मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था ) से मिला और सिचाई दर को आधा करने की मांग की | इस घटना के १७ साल बाद राममनोहर लोहिया ने नहर-रेट को घटाने के लिए सत्याग्रह की घोसणा की और गिरफ्तार हुए | उनके समर्थन में छोटे-बड़े सभी समाजवादी घर से निकल पड़े , जेलों में जगह कम पड़ गई | हमारे रास्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह की पहली गिरफ़्तारी आब-पाशी इसी सत्याग्रह में हुई थी | मै यह बात बचपन से सुनता था कि किसानो और किसानों की बेहतरी के लिए लोहिया व आम्बेडकर नगर रेट कम कराना चाहते थे | जब उत्तर प्रदेश में पहली पूर्ण बहुमत की समाजवादी सर्कार बनी और मुझे सिचाई मंत्री का दायित्व मिला | मेरा पहला निर्णय हुआ कि किसानों की सीचाई हेतु नहरों का पानी निशुल्क दिया जायेगा | हमारे इस निर्णय की पीछे वैचारिक छाया बाबा साहब व लोहिया जी की ही है | हमारी पीढ़ी को जो बेहतर समाज और देश प्राप्त हुआ है , उसे बनाने में लोहिया व आम्बेडकर का अनिवार्च्निये योगदान है| लेकिन मुझे स्वीकारने में जरा भी हिचक नहीं कि अभी भी देश व समाज उस संस्थिति में नहीं है , जहा हमारे दोनों विभूतियाँ देखना चाहते थे | उनके अधूरे सपनों को पूरा करना हमारा दायित्व है |

लोहिया व आम्बेडकर को पढ़े व जाने बिना हम भारतीय समाज की सूक्ष्म व जटिल संरचनाओं को नहीं जान सकते | इनसे बड़े विश्लेषक अभी तक नहीं हुए| दोनों ने वातानुकूलित कक्ष में बैठ कर सिद्धांत व विचार नहीं दिए अपितु समाज की विसंगतियों से लड़ते हुए ,देश दुनिया की यायावारी करते हुए तथा निरंतर मनन व मंथन करते हुए नए दर्शन दिए जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं |

समाजवादियों का बाबा साहब के प्रति सम्मान भाव किसी प्रमाण का मोहताज नहीं है इस पुस्तक में संकलित लोहिया के ऐतिहासिक पन्नों से वह स्वयं उजागर होता है लोहिया के निर्देश बाद डॉक्टर आम्बेडकर पर डॉ प्रामाणिक पुस्तकें लोहिया के शिष्य मधु लिमए और सपा के प्रवक्ता व महासचिव मोहन सिंह ने लिखी है| लिमए की पुस्तक के नेपाली संस्करण का विमोचन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है| दीपक की यह पुस्तक इसी श्रंखला की अग्रिम कड़ी है| सन्दर्भवस उल्लेखनीय है की आम्बेडकर के नाम पर देश में पहली व्यापक योजना का श्रेय नेताजी मुलायम सिंह यादव व समाजवादी सरकार को जाता है उन्होंने १९९१ में आम्बेडकर ग्राम विकास योजना चलाई थी | ताकि गांवों का पिछड़ापन दूर हो | आम्बेडकर के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने ही आम्बेडकर महासभा को लखनऊ भवन आबंटित किया | इसी परिसर में बाबा साहब की पवित्र अस्थियाँ स्थापित हैं|विधानसभा के सामने मुख्य मार्ग का नाम नेताजी ने ही बाबा साहब के नाम पर किया था |

लोहिया आम्बेडकर भले ही ना मिले हो लेकिन दोनों के सहयोगी व पार्टी वर्कर आपस में मिलकर काम करते थे |आम्बेडकर के चुनाव में समाजवादियों ने उनकी खुलकर मदद की थी| संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष श्रीधर महादेव जोशी, जॉर्ज फर्नांडिस व मधु लिमए आदि ने बाबा साहब का प्रचार किया था| लोहिया को 27 सितंबर 1956 को पत्र लिखकर धर्मवीर गोस्वामी व विमल मेहरोत्रा ने बाबा साहब को कानपुर लोक सभा लड़ाने की बात कही| लोहिया तैयार थे| लोहिया के भी चुनावी सभाओं में बाबा साहब के परिगणित संघ के पदाधिकारी भाषण देते थे| इसकी जानकारी लोहिया को 10 दिसंबर 1956 को लिखे पत्र से मिलती है| इतिहास से न केवल ज्ञान अपितु प्रेरणा व सीख मिलती है, जिससे हम वर्तमान को सुधार सकते हैं और वर्तमान में ही स्वर्णिम भविष्य की पूर्वपीठिका तैयार कर सकते हैं| आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए आज हमें बीते हुए कल के पलों से गुजरना होगा| देश का भला सिर्फ उसी पथ, पंथ व विचार से संभव है जिसे समाजवाद कहते हैं, जिसके प्रणेता डॉ अंबेडकर व लोहिया सादृश्य राजनीतिक ऋषि हैं|

प्रिय दीपक ने लोहिया व बाबा साहब की वैचारिक व कार्यप्रणालीगत समानताओं को काफी मेहनत से एक सूत्र में पिरोकर पुस्तक का रुप दिया है| डॉ अंबेडकर व लोहिया के दुर्लभ पत्रों और विचारों से शोध-अध्येताओं को काफी लाभ मिलेगा| मुझे पूरी उम्मीद है कि समाजवाद के प्रसंग में बाबा साहब व डॉक्टर लोहिया कि इस सादृश्यता (Analogy) नए विमर्श का सूत्रपात होगा|

मैं पुनः समाजवादी लेखक, विचारक व नेता व सपा सहप्रवक्ता दीपक मिश्र को एक और संग्रहणीय कृति तथा प्रशंसनीय कार्य के लिए शुभकामना देता हूं| इस पुस्तक को मौलिक कृति इसलिए भी कहना चाहूंगा, क्योंकि अब तक लोहिया व डॉक्टर अंबेडकर अलग-अलग पढ़े व लिखे गए हैं| दोनों एक साथ लिखने व पढ़ने का काम पहली बार समाजवाद के प्रसिद्ध विचारक वह विद्वान दीपक मिश्र ने किया है|