पत्र विनिमय

बाबा साहेब व लोहिया के दुर्लब पत्र विनिमय

इन पत्रों के अवलोकन और अध्ययन से पता चलता है की लोहिया और भीम राव आम्बेडकर के मध्य अंतिम दिनों में एक मंच पर आने और साझा करने की भूमिका पूर्णतया बं चुकी थी | दोनों के समर्थक और सहयोगी आपस में एक दुसरे के साथ विचार विनिमय करते थे | लोहिया और आम्बेडकर में किसी भी प्रकार का विरोध नहीं था | दोनों मिलकर भारतीय राजनीति के इतिहास में नए अध्याय का सूत्रपात्र करने ही वाले थे की बाबा साहब का देहावसान हो गया| उपलब्ध पत्रों से स्पष्ट है की बाबा साहब और लोहिया एक दुसरे की विद्वता व योगदान के कायल थे|

मधु लिमये ने बाबा साहब पर पुस्तक डा. राममनोहर लोहिया के निर्देश के बाद लिखा जो बाबा साहब पर लिखी गई सबसे प्रामादिक पुस्तकों में से एक है|

- दीपक मिश्र

लोहिया का पत्र

हैदराबाद, १०-१२-१९५५

      मैनकाइंड पूरे मन से जाती समस्या को अपनी सम्पूर्णता में खोलकर रखने का प्रयत्न करेगा |इसीलिये, आप इसके लिए अपना कोई लेख भेज सके तो प्रसन्नता होगी|लेख 2500 और 4000 शब्दों के बीच हो तो अच्छा| आप जिस विषय पर चाहे,लिखिए| हमारे देश में प्रचलित जाति-प्रथा के किसी पहलू पर अगर आप लिखना पसंद करें, तो मैं चाहूंगा कि आप कुछ ऐसा लिखे की हिन्दुस्तान की जनता ना सिर्फ क्रोधित हो बल्कि आश्चर्य भी करे | मैं नही जानता कि मध्य प्रदेश में लोकसभा के चुनाव भाषणों में आपके बारे में मैंने जो कहा, उसे आपके अनुयायी ने, जो मेरे साथ रहा,आपको बतलाया या नहीं|अब भी मैं बहुत चाहता हूँ कि क्रोध के साथ दया भी जोडनी चाहिए और कि आप ना सिर्फ अनूसूचित जातियों के नेता बनें,बल्कि पूरी इंदुस्तानी जनता के भी नेता बनें|

      हमारे क्षेत्रीय शिक्षण शिविर में यदि आप आ सके तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी|यह सोंच कर की इसके साथ वाली |विषय सूची सहायक होगी,उसे भेजा जा रहा है|अगर आप अपने भाषण का सार पहले ही भेज दें,तो बाद में उसे प्रकाशित करना अच्छा होगा |हम चाहते हैं कि एक घंटे के भाषण के बाद उस पर एक घंटे तक चर्चा भी हो|

      मैं नहीं जानता कि समाजवादी दल के स्थापना सम्मलेन में आपको कोई दिलचश्पी होगी या नहीं| आप पार्टी के सदस्य नहीं हैं पर फिर भी सम्मलेन में आप विशेष आमंत्रित होकर आ सकते हैं|अन्य विषयों के अलावा,सम्मलेन में खेत मजदूरों,कारीगरों और संसदीय काम से सम्बंधित समस्याओं पर भी विचार होगा और इनमे से किसी एक पर कुछ महत्वपूर्ण बात कहनी ही है|

      किसी बात को बतलाने के लिए यदि आप सम्मलेन की कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहें, तो मैं समझता हूँ कि सम्मलेन और विशेष रूप से अनुमति देगा |

सप्रेम अभिवादन सहित,

आपका
राम मनोहर लोहिया


बाबा साहब का जवाब

दिल्ली, २४-९-१९५६

प्रिय डॉक्टर लोहिया ,

      आपके दो मित्र मुझसे मिलने आये थे |मैंने उनसे काफी देर तक बात चीत की,हालाकि हम लोंगो में आपके चुनाव कार्यक्रम के बारे में कोई बात नहीं हुई|

      अखिल भारतीय परिगणित जाति संघ की कार्यसमिति की बैठक ३० सितम्बर १९५६ को होगी और मैं समिति के सामने आपके मित्रों का प्रस्ताव रख दूंगा |कार्यसमिति की बैठक के बाद मैं चाहूंगा की आपकी पार्टी के प्रमुख लोंगो से बातचीत हो सके हम लोग अंतिम रूप से तय कर सके की साथ होने के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं|मुझे बहुत ख़ुशी होगी अगर आप दिल्ली में मंगलवार, २ अक्टूबर ,१९५६ को मेरे यहाँ आ सकें|अगर आप आ रहे हैं तो कृपया तार से सूचित करें ताकि मैं कार्यसमिति के कुछ लोंगो को भी आपसे मिलने के लिए रोक सकूं|

आपका
बी.आर.आम्बेडकर


लोहिया का प्रत्युत्तर

हैदराबाद, १-१०-१९५६

प्रिय डॉक्टर आम्बेडकर ,

      आपके 24 सितम्बर के कृपा- पत्र के लिए बहुत धन्यवाद | हैदराबाद लौटने पर मैंने आज आपका पत्र पढ़ा और इसलिये आपके सुझाए समय पर दिल्ली पहुच सकने में बिलकुल असमर्थ हूँ| फिर भी जल्दी से जल्दी आपसे मिलना चाहूँगा | मैं उत्तर प्रदेश में अक्टूबर के बीच में रहूँगा और आपसे दिल्ली में १९ या २० अक्टूबर को मिल सकूंगा | अगर आप २९ अक्टूबर को बम्बई में हो तो वहाँ आपसे मिल सकता हूँ |कृपया मुझे तार से सूचित करें की इन डॉ तारीखों में कौन सी आपको ठीक रहेगी |

      अन्य मित्रों से आपकी सेहत के बारे में जान कर चिंता हुई|आशा है की आप आवश्यक सावधानी बारात रहे होंगे |

      मैं अलग से मैनकाइंड के तीन अंक आपको भिजवा रहा हूं|विषय का सुझाव देने का मेरा विचार हो रहा था,लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा | मैनकाइंड के तीनों अंक आपको विषय चुनने में मदद करेंगे|मैं केवल इतना ही कहूँगा कि हमारे देश में बौद्धिकता निढाल हो चुकी है| मैं आशा करता हूँ की यह वक्ती है, और इसलिए आप जैसे लोगों का बिना रूक के बोलना बहुत ज़रूरी है|

आपका
राम मनोहर लोहिया


बाबा साहब का प्रत्युत्तर

दिल्ली, ५-१०-१९५६

प्रिय डॉ. लोहिया ,

      आपका एक अक्टूबर १९५६ का पत्र संख्या ८८२१ मिला | अगर आप २० अक्टूबर को मुझसे मिलना चाहते हैं तो मैं दिल्ली में ही रहूँगा , आपका स्वागत है| समय के लिए टेलीफ़ोन कर लेंगे |

आपका
बी.आर.आम्बेडकर


लोहिया-आम्बेडकर संवाद से जुड़े महत्वपूर्ण पत्र

विमल मेहरोत्रा,धर्मवीर गोस्वामी का पत्र

कानपुर, २७-०९-१९५६

प्रिय डॉक्टर साहब,

      एक दोस्त के जरिये हम लोगों को दिल्ली जाकर डॉ. आम्बेडकर से मिलने का न्योता मिला | ये डॉ. आम्बेडकर के बहुत विश्वसनीय आदमी हैं |हम लोग दिल्ली जाकर उनसे मिले और ७५ मिनट तक बातचीत हुई | यह साफ़ कर दिया गया था की हम लोग बिलकुल व्यक्तिगत रूप से आये हैं| जब आप दिल्ली में, डॉ0 आम्बेडकर आपसे जरूर मिलना चाहेंगे | वे बुजुर्ग हैं और उनकी तबियत ठीक नहीं है | वे सहारा लेकर चलते फिरते है |

      वे पार्टी का पूरा साहित्य चाहते है और मैनकाइंड के सभी अंक | वे इसका पैसा देंगे (विधान, नीति और कार्यक्रम भी)

      वे हमारी राय से सहमत थे कि श्री नेहरु हरेक दल को तोड़ना चाहते है और कि विरोधी पक्ष को मजबूत होना चहिये |

      वे मजबूत जड़ो वाले एक नए राजनैतिक दल के पक्ष में है |

      वे नहीं समझते कि मार्क्सवादी ढंग का साम्यवाद हिदुस्तान के लिए लाभदायक होगा, लेकिन जब हम लोगो ने अपना द्रष्टिकोण रखा, तो उनकी दिलचस्पी बढ़ी |

      हम लोगो ने उन्हें कानपुर के क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ने का न्योता दिया | इस ख्याल को उन्होंने नापसंद नहीं किया, लेकिन कहा कि वे आपसे पुरे हिदुस्तान के पैमाने पर बात करना चाहते है | हम लोगो ने यह साफ़ क्र दिया कि हम लोग अपनी नीति के कारण कोई समझौता नहीं कर सकते | ऐसा लगा कि वे अनुसूचित जातिसंघ से बहुत मोह नहीं रखते | कार्यप्रणाली की बैठक दिल्ली में ३० को हो रही है | श्री नेहरु के बारे में जानकारी करने में उन्हें बहुत दिलचस्पी थी | (सिनेमा ऑउटफिट आदि की मैनकाइंड वाली चर्चा) उन्होंने कहा की इन बातो का यथेष्ट प्रचार होना चहिये | वे दिल्ली से एक अंग्रेजी दैनिक भी निकालना चाहते है |

      वे हम लोगो के द्रष्टिकोण को बहुत सहानुभूति, तबियत और उत्सुकता के साथ, पुरे विस्तार में, समझना चाहते थे | उन्होंने थोड़े विस्तार में इंग्लॅण्ड की प्रजातांत्रिक प्रणाली की चर्चा की, जिससे उमीदवार चुने जाते है और लगता है की जनतंत्र में उनका दृढ विश्वास है |

      यह सार है हम लोग खुद नहीं अ सके क्योंकि यह पता नहीं था कि आप कहा है और हमारे पास पैसा नहीं था | २३-९-५६ को हैदराबाद दफ्तर में टेलीफोन से बात करने की कोशिश की, कोई जवाब नहीं मिला, क्योंकि वहा पर किसी ने टेलीफोन ही नहीं उठाया |

डॉ0 आम्बेडकर का पता : २६ अलीपुर रोड, नई दिल्ली |

आपका
विमल मेहरोत्रा
धर्मवीर गोस्वामी


डॉक्टर लोहिया का जवाब

प्रिय विमल और धर्मवीर,

      तुम्हारी चिठ्ठी मुझे मिली | मई चाहूँगा कि तुम लोह डॉ0 आम्बेडकर से बातचीत जारी रखो, लेकिन याद रखना कि जिस दिशा का तुम लोगो ने खुद अपनी चिठ्ठी में उल्लेख किया है, उससे इधर-उधर नहीं होना |

      डॉ0 आम्बेडकर की सबसे बड़ी दिक्कत रही है की वे सिद्धांत में अटलांटिक गुट से नजदीकी महसूस करते है | मै नहीं समझता कि इस निकटता के पीछे सिद्धांत के अलावा और भी कोई बात है | लेकिन इसमें हम लोगो को बहुत सतर्क रहना चाहिए | मै चाहता हूँ कि डॉ0 आम्बेडकर समाज दूरी के खेमे कि स्थिति में आ जाए | तुम लोग अपने मित्र के जरिये सिद्धांत की थोडा-बहुत बहस भी चलाओ |

      डॉ0 आम्बेडकर को लिखी चिठ्ठी की एक नक़ल भिजवा रहा हूँ | अगर वे चाहते है कि मै उनसे दिल्ली में मिलू तो तुम लोग भी यहाँ रह सकते हो | मेरा डॉ0 आम्बेडकर से मिलना राजनैतिक नतीजो के साथ-साथ इस बात की भी तारीफ होगी कि पिछड़ी और परिगणित जातियां उनके जैसे विद्वान पैदा कर सकती हैं |

तुम्हारा
राम मनोहर लोहिया


विमल मेहरोत्रा,धर्मवीर गोस्वामी का पत्र

कानपुर, १५-१०-५६

आदरणीय डॉक्टर साहब,

      पिछले महीने मैं और मेरे मित्र श्री धर्मवीर गोस्वामी आपसे दिल्ली में मिले थे | उसके बाद अपनी बातचीत की खबर हमने डॉ0 लोहिया को दी |

      मैंने बहुत ध्यान से परिगणित जाति संघ की कार्यसमिति के फैसलों का अध्ययन किया है | उसमे से देश की जनता के लिए विशेष दिलचस्पी की तीन चीजे निकलती हैं |

      (क) आपकी कि समिति ने रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के नाम से एक नई पार्टी बनाने की जरूरत महसूस की है | हम लोगों को इस नई पार्टी की निति और कार्यक्रम या इसके सिधांत के बारे में अब तक कुछ पता नहीं | लोगों के लिए यह संभव नहीं की अभी इसके बारे में राय कायम कर सके, हालाँकि देश उत्सुकता के साथ, मौजूदा दोषों को दूर करने के लिए इलाज के लिए, आपके जैसी विद्वता वाले पुरुष के विचार जानना चाहता हैं | मुझ जैसे आदमी का आपको कोई सलाह देना धृष्टता होगी, लेकिन देश के लिए अच्छा होता की देश के मौजूदा राजनैतिक दलों के नीति और कार्यक्रम को आप देख लेते और इनकी कथनी और करनी के बारे में अपनी राय देते |

      (ख) मुझे क्षमा करेंगे यदि मै साफ़ तौर पर कहूँ कि चुनाव समझौते पर आपकी समिति की नीति मैं समझ नहीं सका हूँ | मै पूरी तौर पर दुविधा मे हूँ | उत्तर प्रदेश परिगणित जाती संघ के पार्लियामेंटरी बोर्ड के प्रवक्ता ने कहा कि संघ किसी वामपक्षी दल से समझौता नहीं चाहता, जबकि यदि मैंने ठीक समझा है तो, छपी खबरों के अनुसार आपकी केन्द्रिय्र समिति ने चुनाव समझौते या इसी तरह के किसी गठबंधन को पसंद किया है | सोशलिस्ट पार्टी ने अपनी नीति में तय किया है कि हम लोग कोई समझौता या गठबंधन नहीं करेंगे, लेकिन उन क्षेत्रो के अलावा और कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे जंहा कुल मतदाताओ के एक प्रतिशत पार्टी सदस्य न हों | और जो कम से कम एक तिहाई मतदान केन्द्रों में फैले न हों | सोशलिस्ट पार्टी का विश्वास है कि दरअसल कोई और पार्टी विरोधी पार्टी है ही नहीं | लेकिन उपर्युक्त फैसले से दूसरी तथाकथित विरोधी पार्टियों से खुद-ब-खुद चुनाव समझौते का एक रास्ता निकल आता है, क्योंकि हम लोग अपने को लगभग तीन हज़ार क्षेत्रो से अलग अलग रखेंगे और ५ सौ या ६ सौ क्षेत्रो में चुनाव लड़ेंगे |

      (ग) स्वेज के बारे में आपकी समिति का प्रस्ताव राष्ट्रिय स्वार्थ की द्रष्टि से भले ही सोचा गया हो, लेकिन मुझे बहुत शक है कि दूर की द्रष्टि से यह हिदुस्तान के लोगो के सचमुच स्वार्थ में होगा इसका मतलब यह होगा कि हिदुस्तान में लगी विदेशी पूंजी का राष्ट्रीयकरण बिना उन देशो की सहमति के नहीं किया जायेगा जिनके पूंजीपतियों का पैसा लगा हो |

      मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि परिगणित जाति संघ के दफ्तर को कृपया इन प्रस्तावों को हमें भेजने के लिए कहें | मुझे पता चला है कि डॉ0 लोहिया आपसे मिलने वाले है | लेकिन मै समझता हूँ कि निकट भविष्य में उनके लिए यह संभव नहीं होगा | अगर आप अपना कुछ कीमती समय दें सकें, तो मैं आकर आपसे सारी बातें का सकूँ |

मुझे आशा है कि आपकी सेहत ठीक होगी और आप समय निकाल सकेंगे |

आपका
विमल मेहरोत्रा


हैदराबाद, १-७-५७

प्रिय मधु,

      मुझे डॉ0 आम्बेडकर से हुई और उनसे संबंधित चिठ्ठी-पत्री मिल गई है, और मै उसे तुम्हारे पास भिजवा रहा हूँ | तुम समझ सकते हो कि डॉ0 आम्बेडकर की अचानक मौत का दुःख मेरे लिए थोडा बहुत व्यक्तिगत रहा है, और अब भी है | मेरी बराबर आकांक्षा थी कि वे हमारे साथ आएं, केवल संगठन में ही नहीं बल्कि पूरी तौर से सिधांत में भी, और वह मौका करीब मालूम होता था |

      मैं एक पल के लिए भी नहीं चाहूंगा की तुम इस पत्र व्यवहार को हम लोगो के व्यक्तिगत नुकसान की नज़र से देखो | मेरे लिए डॉ0 आम्बेडकर हिदुस्तान कि राजनीति के एक महान आदमी थे और गाँधी जी को छोड़कर, बड़े-से-बड़े सवर्ण हिदुओ के बराबर | इससे मुझे बराबर संतोष और विश्वास मिला है कि हिंदू धर्म की जाति-प्रथा एक-न-एक दिन ख़त्म की जा सकती है

      एक पल के लिए भी नहीं चाहता नहीं चाहूंगा कि तुम इस पत्र व्यवहार को हम लोगों के व्यक्तिगत नुकसान की नजर से देखो| मेरे लिए डॉक्टर अंबेडकर हिंदुस्तान की राजनीति के एक महान आदमी थे और गांधी जी को छोड़कर बड़े-से-बड़े सवर्ण हिंदुओं के बराबर| इससे मुझे बराबर संतोष और विश्वास मिला है कि हिंदू धर्म की जाति-प्रथा एक-न-एक दिन खत्म की जा सकती है|

      मैं बराबर कोशिश करता रहता हूं कि हिंदुस्तान के हरिजनों के सामने एक विचार रखूँ| मेरे लिए यह बुनियादी बात है| हिंदुस्तान के आधुनिक हरिजनों में दो प्रकार हैं, एक डॉक्टर अंबेडकर और दूसरे श्री जगजीवन राम| डॉ आम्बेडकर विद्वान थे, उनमें स्थिरता, साहस और स्वतंत्रता थी, वह बाहरी दुनिया को हिंदुस्तान की मजबूती के प्रतीक के रूप में दिखाए जा सकते थे, लेकिन उनमें कटुता थी और वह अलग रहना चाहते थे| गैर-हरिजनों के नेता बनने से उन्होंने इनकार किया| पिछले 5000 वर्ष की तकलीफ और हरिजनों पर उसका असर मैं भली प्रकार समझ सकता हूं| लेकिन वास्तव में तो यही बात थी| मुझे आशा थी कि डॉ आम्बेडकर जैसे महान भारतीय किसी दिन इस से ऊपर उठ सकेंगे| लेकिन इसके बीच मौत आ गई|

      श्री जगजीवन राम ऊपरी तौर पर हर हिंदुस्तानी और हिंदू के लिए सद्भावना रखते हैं और हालाकि सवर्ण हिंदुओं से बातचीत में उनकी तारीफ और चापलूसी करते हैं पर यह कहा जाता है कि केवल हरिजनों की सभाओं में घृणा की ध्वनि भी फैलाते रहते हैं| इस बुनियाद पर न तो हरिजन और न हिंदुस्तान ही उठ सकता है| लेकिन डॉक्टर अंबेडकर जैसे लोगों में भी सुधार की जरूरत है|

      परिगणित जाति संघ के चलाने वालों को मैं अब नहीं जानता| लेकिन मैं चाहता हूं की देश हिंदुस्तान की परिगणित जाति के लोग देश की पिछली 40 साल की राजनीति के बारे में विवेक से सोंचें| मैं चाहूंगा कि श्रद्धा और सीख के लिए वह डॉक्टर अंबेडकर को प्रतीक माने, डॉक्टर अंबेडकर की कटुता को छोड़कर उनकी स्वतंत्रता को लें, एक ऐसे डॉक्टर अंबेडकर को देखें जो केवल हरिजनों के ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के नेता बनें |

तुम्हारा
राम मनोहर लोहिया


      (इन पत्रों के अवलोकन और अध्ययन से पता चलता है की लोहिया और भीमराव अंबेडकर के के मध्य अंतिम दिनों में एक मंच पर आने और साझा संघर्ष करने की भूमिका पूर्णतया बन चुकी थी| दोनों के समर्थक और सहयोगी सहयोगी आपस में एक दूसरे के साथ विचार-विनिमय करते थे| लोहिया और अंबेडकर में किसी भी प्रकार का विरोध नहीं था| दोनों मिलकर भारतीय राजनीति के इतिहास में नए अध्याय का सूत्रपात करने ही वाले थे कि बाबा साहब का देहावसान हो गया उपलब्ध पत्रों से स्पष्ट है कि बाबा साहब और लोहिया एक दूसरे की विद्वता व योगदान के कायल थे|

      मधु लिमए बाबा साहब पर पुस्तक डॉ राम मनोहर लोहिया के निर्देश के बाद लिखा जो बाबा साहब पर लिखी गई सबसे प्रमाणिक पुस्तकों में से एक हैं)

-दीपक मिश्र